जय माँ शारदे
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जनक जननि पदमरज , निज मस्तक पर धरि
बन्दौं मातु सरस्वती , बुद्धि बल दे दातारि
पूर्ण जगत में व्यापत तव , महिमा अमित अनंतु
दुष्टजनों के पाप को , मातु तु ही अब हन्तु
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी , जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी
जय जय जय वीमाकर धारी , करती सदा सुहंस सवारी
रूप चतर्भुज धारी माता , सकल विश्व अन्दर विख्याता
जग में पाप बुद्धि जब होती ,तब ही धर्म की फीकी ज्योति
तब ही मातु की निज अवतारी , पाप हीन करती महतारी
वाल्मीकि जी थे हत्यारा , तव प्रसाद जानें संसारा
रामचरित जो रचे बनाई , आदि कवि की पदवी पाई
कालिदास जो भये विख्याता , तेरी कृपा दृष्टि से माता
---- रामबाबू ---------------------------------------------------------------------------------------
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